Friday, 30 May 2014

CUT, COPY & PASTE BY “ HIV VIRUS” : HIV वायरस से “कट, कोपी & पेस्ट”

Source : sciencedaily.org, eLIFE journal
आर्हेनियस इन्स्टियूट के बायोमिडीसीन विभाग के संशोधको ने HIV वायरस से हमारे जनीनिक बंधारण में सुधार करने की टेक्नीक खोजी है । इससे हमारे जनीनिक बंधारण की त्रुटीयों को सुधारा जा सकता है । जिससे आनुवंशिक रोगो के इलाज में एक नई राह खुल गई है ।

पहले जनीनिक बंधारण में सुधार करने के लिए ई. कोली बैक्टेरीया का उपयोग होता था । लेकिन इस पध्ध्ति से जनीनिक शृंख्ला को इच्छित जगह से काटा नहीं जा सकता था । इसलिए जनीनिक बंधारण सुधार में इच्छित परीणाम नहीं मिलते थे ।
HIV वायरस
HIV वायरस अपने जनीनों को हमारे कोषो के जनीन बंधारण में दाखिल कर देते है । जिससे यह कोष अब वायरस के जनीन कॉड के अनुसार काम करने लगता है । इसी कार्यप्रणाली को ध्यान में रखते हुए  वैज्ञानिकोंने  HIV वायरस के नेनो अणुओं का उपयोग जनीन बंधारण में इच्छित सुधार करने के लिए किया । लेबोरेटरी में संवर्धित निश्चित जनीन बंधारणवाले HIV वायरस हमारे कोषो के जनीन कॉड को काटने (cut) और नये जनीन कॉड को दाखिल करने (paste) का काम करेंगे ।

इस पध्धति से HIV वायरस का उपयोग AIDS रोग की बिमारी के इलाज में इस्तमाल किया जा सकता है । इस प्रकार हमारे जनीनिक बंधारण में सुधार कर AIDS रोग के प्रति रोगप्रतिकार तंत्र मजबूत किया जा सकता है ।

Tuesday, 27 May 2014

Nature Inspires Drones : छोटे 'ड्रोन' रोबोट



Source : Sciencedaily.com

ड्रोन विमान
अमेरिका का ड्रोन विमान अफगानिस्तान में अपने कारनामों के लिए सब जानते है। यह विमान बिना पाइलोट के उडता रहता है । उसका नियंत्रण जमीन पर स्थित एक कक्ष से किया जाता है । इस विमान में HD-कैमेरे लगे होते है । जिससे काफी ऊंचाई से भी साफ तस्वीरें ली जा सकती है ।

लेकिन, शहर के भीड-भाड वाले विस्तार में ड्रोन विमान का संचालन ठीक से नहीं हो पाता था । उसका कद भी बडा होने की वजह से नीची उडान में असफल रहते है ।

अब संशोधकोने कुदरत के छोटे सजीव से प्रेरणा लेते हुए इस समस्या हल ढुढने का प्रयास किया है ।

अलग अलग 14 संशोधक टीमोंने पक्षीओं, चमगादड, तीतली, मधुमख्खी जैसे प्राणी की शरीर रचना का
अध्यन करके छोटे उडनेवालें रोबोट बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया है । यह छोटे रोबोट शहरी भीड-भाड वालें विस्तारों से आराम से गुजर पायेंगे ।


रोबोट का महत्व :
जापान के अणुरिएक्टर के विस्फोट जैसी दुर्घटनाओं के समय यह रोबोट वहां भेजकर स्थिति का ब्योरा लिया जा सकता है । जासूसी के क्षेत्र में यह रोबोट ज्यादा काम में आ सकता है । इन रोबोट का अच्छा उपयोग ‘खोज अभियान’ और ‘बचाव अभियान’ में हो सकते है ।

23 May, 2014 को प्रदर्शित एक रिपोर्ट -Bioinspiration and Biomimetics-के अनुसार संशोधक टीमोंने अपने काम का प्रदर्शन किया। इस प्रकार के रोबोट्स हवा के तेज बहाव में स्थिर रहकर उड नहीं सकते । अभी रोबोटिक्स विज्ञान में काफी सुधार होने है । आशा रखते है की आने वाले सालों में छोटे – छोटे रोबोट्स सामान की डिलीवरी करते हुए हवा में उडते नजर आएगे ।

Monday, 26 May 2014

10 New Species of 2014 (part 2) : 2014 में खोजे गई 10 नई सजीव जाति

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(6) पश्चिमी ओस्ट्रेलिया के बरसाती जंगलो की छिपकली (Saltuarius eximius) - इसकी पूंछ फैली हुई होती है और उसके रंग की वजह से इन छिपकलीयों को आसानी से देखा नहीं जा सकता ।

(7) स्पेन के दक्षिणी समुद्र में पानी के नीचे गुफा में पाया गया एक कोषी जीव (protista) - जो बहुकोषी स्पोंज की नकल जैसा लगता है |


(8) स्पेश क्राफ्ट जहां पे बनते है वहां की फर्श पर पेदा होते हुए बैक्टेरिया की नई जाति (Tersicoccus phoenicis) यह संभव है, यह जाती स्पेश फ्राफ्ट के साथ अंतरिक्ष में भी पहोंच चुकी हो!

(9) कोस्टो रिको के जंगलो से मिली बेहद छोटी मधु मख्खी की जाति (Tinkerbella nana) इस मधुमख्खी की लंबाई 0.00984 ईंच है । यह अपने अंडे दुसरे किटकों के अ‍ॅंडो में छुपा देते है ।

(10) पश्चिमी क्रशिया के ल्युकिना जामा-ट्रोजामा गुफा में 3000 फीट जमीन के नीचे अंधी स्नेल (Zospeum tholossum) की जाती मिली है । जो 0.08 ईंच लंबी है । स्नेल की सामान्य जातियों के मुकाबले यह धीरे चलती है । एक सप्ताह में करीब 1 ईंच से भी कम !

Sunday, 25 May 2014

10 New Species of 2014 (part 1) : 2014 में खोजे गई 10 नई सजीव जाति

(1) इक्वाडोर का 'cute' ओलिंग्योटो
 (Bassaricyon neblina) यह 35 साल में सस्तन समुदाय में खोजी गई पहली नयी जाति है ।

(2) थाइलेन्ड का क्वीसाक ड्रेगन पेड ((Dracaena kaweesakii)) यह पेड 40 फीट ऊँचा है ।

(3) एंटाकर्टिका का एनड्रिल ऐनामोन यह 1 ईंच से छोटा सजीव अपना शरीर बर्फ में दबा के रखता है । आमतौर यह सजीव समुद्र पानी में ही पाए जाते है । एंटाकर्टिका में यह पहली बार पाए गए है ।

(4) सांटा कटलिना की गुफाओ से मिला दिखने में भयानक दिखनेवाला केकडा (Liropus minusculus) का कंकाल, इस जाती की मादा की लंबाई 1 ईंच का 1/10 और नर की लंबाई 1/8 होती है ।
(5) नारंगी पेनिसिलीयम फूग -

⇒⇒Remaining 5 will published soon... keep watching....

Friday, 23 May 2014

'LIVE' Supernova explosion : सुपरनोवा विस्फोट को live देखा गया

source : sciencedaily.com
ब्रह्मांड में 'वुल्फ-रायेट तारा' सबसे महाकाय होता है । हमारे सूर्य से यह तारा 20 गुना ज्यादा भारी होता है  और सूर्य से 5 गुना ज्यादा गर्म होता है ।ब्रह्मांड में ऐसे तारे कम दिखने को मिलते है । जिसके कारण खगोल वैज्ञानिको के पास इनके बारें में ज्यादा जानकारी नहीं थी।

iPTF प्रणाली :
लेकिन,   intermediate Palomar Transient Factory (iPTF)  की मदद से ब्रह्मांड के किसी भी कोनें में अगर कोई भी घटना होने वाली है तो तुरंत उसका अद्ययन किया जा सकता है ।  यह कम्प्युटर से संचालित प्रणाली पुरे ब्रह्मांड का ब्योरा रखती है । जहां भी कोई अजीब सी घटना होने की संभावना है तो तुरंत पृथ्वी पर स्थित नियंत्रण कक्ष को संकेत भेजती है ।
 
iPTF  प्रणाली की वजह से ही वैज्ञानिको को जानकारी मिली की, 360 लाख प्रकाश वर्ष दूर एक  'वुल्फ-रायेट तारा' प्रचंड सुपरनोवा - llb supernova - बन रहा है । iPTF  प्रणाली का उपयोग करते हुए विझमन इन्स्टियूट (ईजरायल) के वैज्ञानिक ने इस सुपरनोवा -2013cu  को उसके विस्फोट के कुछ घंटो के पहले ही देख लिया। उन्हों ने जमीन से टेलिस्कोप से इस तारें का 5.7 घंटो तक अद्ययन किया । और उसके विस्फोट के पश्चात 15 घंटो तक उसका अद्ययन किया ।

तारें की जन्म कुंडली :
(a) ब्रह्मांड में हाइड्रोजन गेस के बीच गुरुत्वीय आकर्षण होने पर तारा बनने का प्रारंभ हुआ
 (b), (c)  गुरुत्वीय आकर्षण प्रबल होने पर तारें के केन्द्रिय भाग में केन्द्रिय संलयन (nuclear fusion) प्रक्रिया शुरू होती है ।
 (d) गुरुत्वीय आकर्षण और बहारी उर्जा का दबाव संतुलित होने पर तारा चमकता है । हमारा सूर्य इस अवस्था में है ।
(e) गुरुत्वीय आकर्षण चालु रहता है मगर केन्द्रिय भाग में हाइड्रोजन गेस खत्म हो जाने के कारण असंतुलन पेदा होता है ।
(f) अंत हमारे सूर्य से बहोत बडे तारें में सुपरनोवा विस्फोट के साथ उपरी सतह दूर हो जाती है ।

'वुल्फ-रायेट तारा' और सुपरनोवा क्या है ?
सभी तारों में केन्द्रिय संलयन (nuclear fusion) प्रक्रिया से हाइड्रोजन परमाणु का हिलीयम में रूपांतर होता है । तारे में जितना ज्यादा हाइड्रोजन गेस होगा, उतना उसके केन्द्रिय भाग में गुरुत्वीय संकोचन ज्यादा होगा । उतनी केन्द्रिय संलयन प्रक्रिया तेज होगी ।
जब तारे के केंद्र में हाइड्रोजन गेस खत्म हो जाती है तो, कार्बन, ओक्सिजन, नियोन, सोडियम जैसे भारी तत्वो का संलयन शुरू होता है । तारें का केन्द्रिय भाग आर्यन का बन जाए तब तक यह प्रक्रिया चालु रहती है ।

अब भी केन्द्रिय भाग का गुरुत्वीय संकोचन चालु रहता है और अंत में प्रोटोन और इलेक्ट्रोन मिल जाते है । जिसके बाद तारे में विस्फोट हो जाता है । उस समय बहोत सारी ऊर्जा ब्रह्मांड में चारो तरफ बिखरती है । इस विस्फोट को 'सुपरनोवा' कहते है । हमारा सूर्य 100 साल में जितनी ऊर्जा फेंकता है उतनी ऊर्जा सुपरनोवा विस्फोट से प्रति सेकंड मुक्त होती है !! तारा सुपरनोवा के पहले जो अवस्था प्राप्त करता है उसे 'वुल्फ-रायेट तारा' कहते है । जिसमें सुपरनोवा विस्फोट से पहेले एक प्रकार का वायु प्रवाह देखने को मिलता है । जिसमें तारे से द्रव्य बहार बहने लगता है ।


iPTF  प्रणाली की वजह से इस प्रकार सुपरनोवा -2013cu का live अद्ययन हो पाया है । iPTF  प्रणाली की मदद से अब ब्रह्मांड की कई घटनाओं को live देख पायेंगे ।

Wednesday, 21 May 2014

Self Clean Car : एक खुशखबर : 'सुपर आलसी' लोगों के लिए :"अब कार अपने आप ही साफ हो जाएगी।"

left side-सादा रंग;
right side-सुपर हाइड्रोफोबिक रंग
source : cbc.ca
NISSAN कंपनीने अपने एक प्रयोग में एक कार के आधे भाग को सादे रंग (paint) से और बाकी के आधे भाग को 'सुपर हाइड्रोफोबिक' (जलविरागी = जल के प्रति अनाकर्षित होने वाला) रंग से रंग दिया। इस कार को बरसाती ऋतु के माहोल में चलाया गया । तो जैसे हम फोटो में देख रहे है, ठीक वैसे ही जिस भाग पर सुपर हाइड्रोफोबिक रंग लगा है वो भाग साफसुथरा रहा। जबकी, सादे रंग वाला बाकी आधा भाग ज्यादा गंदा हो गया।

वैसे तो, सुपर हाइड्रोफोबिक रंग को 1977 में बनाया गया था । लेकिन उसका व्यापारीक उपयोग नहीं खोजा गया था । करीब एक साल से वैज्ञानिक इस रंग के व्यापारीक उपयोग के बारें प्रयोग कर रहे थे ।

कमल के पत्ते पर पानी के बिन्दु
सुपर हाइड्रोफोबिक 
रंग की सतह पर पानी के बिंदु
सुपर हाइड्रोफोबिक रंग :-
Nanex कंपनी के क्लाटोन बर्ग (Clayton Berg, Belgian-Canadian) ने कमल (Lotus) की पत्तियों का अध्ययन करके 'सुपर हाइड्रोफोबिक रंग' बनाया है । यह रंग को बनाने में नेनोटेक्नोलोजी का उपयोग हुआ है । 
 (b) सतह से सरकता पानी अपने
साथ कचरा भी ले जाता है।

इस रंग के तंतु (fibers) बहोत नजदीक होते है। जिससे पानी-धूल के कण उसके भीतर घूस नहीं पाते । कमल के पत्ते पर जैसे पानी के बिन्दु बन जाते है । वैसे ही इस रंग की सतह पानी के बिन्दु बन जाते है और  तेज हवा से कार की सतह पर सरकते हुए अपने साथ धूल-मिट्टी भी ले जाते है । इस तरह कार अपने आप साफ-self clean-हो जाती है ।

हालांकी, NISSAN कंपनी ने अपनी कोई भी नई कार पर इस रंग को लगाने की बात नहीं की है । फिर भी, अब वो दीन दूर नहीं NISSAN कंपनी अपनी नई कार में ग्राहको को 'सुपर हाइड्रोफोबिक रंग' का विकल्प देगी । इस रंग का उपयोग अन्य चीज-वस्तुओं - कपडें, फर्निचर - में भी किया जा सकता है ।

Tuesday, 20 May 2014

After 80 years "Light turns into Matter" : प्रकाश का पदार्थ में रुपांतर संभव हुआ...80 साल बाद

source : Times of India


जी. ब्रेईट और जॉन ऐ व्हिलर ने प्रकाश का द्रव्य में रूपांतर करने का सिद्धांत 1934 में दिया था।

"प्रकाश के दो कण (फोटोन) को एक दुसरे से टकराया जाए तो उनका इलेक्ट्रोन और पोझिट्रोन में रुपांतर हो जाएगा।"
लेकिन, इसका प्रायोगिक तौर पर कभी पृथक्करण नहीं हो सका। इस प्रयोग को संपन्न करने के शक्तिशाली कण प्रवेगक (पार्टिकल एक्लेरेटर) चाहिए।

2014 में लंडन में स्थित इम्पेरियल कोलेज की 'ब्लेकेट फिजिक्स लेबोरेटरी' में यह प्रयोग किया गया है। इससे जी. ब्रेईट और जॉन ऐ व्हिलर के सिद्धांत को अनुमोदन मिला है।

प्रयोग का महत्व:

इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के शुरूआत के 100 सेकन्डस का चित्र स्पष्ट किया जा सकेगा। बिग बेंग के बाद कैसे यह द्रव्य स्वरूप ब्रह्मांड बना ? इस प्रश्न का उत्तर यह प्रयोग दे पायेगा।

प्रयोग कैसे किया गया ?

प्रथम  चरण :
वैज्ञानिको ने  शक्तिशाली लेसर किरणों से इलेक्ट्रोन्स को प्रकाश गति (3× 108 m/s) के जितना प्रवेगित किया । इन इलेक्ट्रोन्स को सोने (Au, Gold) पर फेंका गया । जिससे अति शक्तिशाली फोटोन (हमारे दृश्यप्रकाश से लाखो गुना!!) का बीम मिलता है ।

द्वितीय चरण:
अब सोने (Au, Gold) के प्याले जैसे पात्र में अंदर की ओर -Hohlraum (German शब्द, 'गुहा')- शक्तिशाली लेसर बीम फेंका जाता है। जिससे तारों में बनता है वैसा ही 'उष्मीय क्षेत्र' बनता है। जिसमें से भी फोटोन निकलते है।(जैसे गरम लोहों से लाल प्रकाश निकलता है!!)

पहेले चरण के फोटोन को इन दूसरे चरण के फोटोन की दिशा में भेजा जाता है । दोनों के टकराने  से इलेक्ट्रोन और पोझिट्रोन पेदा होते है।

प्रो. स्टीव रोझ (इम्पेरियल कोलेज, लंडन) ने बताया की- 'इस प्रयोग से 80 साल पहेले के सिद्धांत को प्रायोगिक सहमति मिली है।  और उच्च ऊर्जा वाले भौतिक प्रयोगो के लिए नई दिशा खुल गई है।'

Monday, 19 May 2014

Red spot of JUPITER will disappear: गुरु ग्रह का लाल धब्बा गायब हो रहा है!!?


source : www.cbc.ca
लाल धब्बे वाला (Red spot) ग्रह अगर पूछा जाए तो ज्यादातर लोगो का जबाब होगा "गुरू (Jupiter)"

लेकिन , रिसर्च से पता चला है की गुरू का ये लाल धब्बा धीरे-धीरे सिकुड रहा है।

गुरू ग्रह पृथ्वी से 11.2 गुना बडा है। हमारे सौर मंडल का सबसे बडा ग्रह है। खगोल वैज्ञानिको के लिए गुरू का 'लाल धब्बा (Red spot)' एक पहेली (mysterious puzzle) के समान है। जब वोयेजर-1 यान  गुरू के पास से गुजरा तब इस लाल धब्बे का रहस्य सुलझा।

Voyager -1
Red Gaint spot 
(magnified view)

ये लाल धब्बा (Red spot) एक तूफान है, जो 300 से अधिक साल से गुरू के वातावरण में घूम रहा है। गुरू ग़्रह पर 2% जितनी ही जमीन है । इस कारण इस तूफान का जोर अब तक कम नहीं हुआ है। इस की रफ्तार करीब 200 माईल प्रति घंटा है।

1995,2009,2014 में
हबल टेलिस्कोप से ली गई तस्वीरें
1800 में इस का कद (dimension) 41,000 किमी जितना था । (हमारे पृथ्वी के जितने 2-3 ग्रह इसमे समा सकते है!!!)
लेकिन, 2014 में इसका कद 16,500 किमी का ही रह गया है। इस का मतलब यह लाल धब्बा (Red spot900 किमी प्रति वर्ष की रफ्तार से  घट रहा है।

मिसेल वोंग (Micheal Wong, Scientist, University of California) बताते है की, "सभी खगोल वैज्ञानिकों के लिए लाल धब्बे (Red spot) का सिकुडना एक रहस्यमय घटना है। अगर इस रफ्तार यह घटना चालु रही तो अगले 17 साल में लाल धब्बा (Red spot) पुरी तरह गायब हो जाएगा।"

Sunday, 18 May 2014

वैज्ञानिकों ने रोगग्रस्त ऊतकों(tissues) को निशाना बनाने के लिए nanovehicle विकसित किया

Source : esciencenews.com
एक ताजा अध्ययन के अनुसार, दो भारतीय वैज्ञानिकों ने अन्य स्वस्थ अंगों को प्रभावित किए बिना  रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) को विशेष दवाईयां देने के लिए "gold nanovehicle" विकसित किया है |

American Association of Pharmaceutical Scientists द्वारा प्रकाशित, AAPS PharmSciTech जर्नल में  दिल्ली विश्वविद्यालय के Dr. Subho Mozumdar, और कोलंबिया विश्वविद्यालय(अमेरिका) के Dr. Arnab De के सहयोगात्मक प्रयास से "The extraordinary proof-of-concept study"  अंतगर्त नेनो ड्रग्स (दवाईयां) की लागत को कम करने का अध्ययन किया है।

इस अध्ययन अनुसार "nanovehicle synthesising की लागत  $ 1 (60 रु.)प्रति मिलीग्राम  हो सकती है।

अमेरिकी पेप्टाइड सोसायटी द्वारा युवा अन्वेषक पुरस्कार से सम्मानित, Dr. Arnab De ने समझाया की, "नेनो व्हिकल का उत्पादन खर्च ज्यादा हो सकता है, लेकिन नेनो पार्टिकल्स का पृष्ठफल ज्यादा होने के कारण नेनो थेरापी में कम मात्रा में उपयोग किया जाता है। इस प्रकार दवाईयों का खर्च कम हो जाता है।"

आगे उन्होंने कहा," नेनो दवा स्वस्थ अंगों को बिना हानि पहुंचाए रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) को सीधा लक्ष्य बनाती है। जिससे नेनो दवा की साइड इफेक्ट नहीं होती है। वर्तमान समय में उपलब्ध दवाईयां को बिना स्वस्थ अंगो को असर किए सीधा रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) तक पहुंचाना संभव नहीं है।"

डॉ. Subho Mozumdar ने कहा : "हमने Nanovehicle के पृष्ठफल को tissue-ligand  molecules (पेशी-लिगेन्ड अणु) और ड्रग्स के साथ काम करने के लिए काफी परिवर्तित किया है। "
"Tissue-ligand molecules (पेशी-लिगेन्ड अणु) खास रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) को लक्ष बनाते हुए Nanovehicle  को रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) की तरफ ले जाते है। जहां Nanovehicle के साथ जुडी हुई दवा मुक्त हो जाती है। इस तरह दवा सीधी रोगग्रस्त ऊतकों (tissues) असर करती है।"

लेकिन, डॉ Dr. Arnab De चेतावनी दी है की, "nanovehicle हमारी रोगप्रतिकारक प्रणाली (immunogenic concern) के साथ अनुकूलन हो जाएगा इसकी गारंटी नहीं है ।"

यह एक और संशोधन का विषय बन जाता है।

The Flying Car


Source : BBC News
अब वो दिन दूर नहीं जब लोगों के अपने निजी प्लेन्स होंगे।(हा, अभी भारत में ये संभव नहीं है! लेकिन ये विदेश की बात है।)

आज कल अमेरिकन सेना का ड्रोन विमान अपने कारनामो के कारण बदनाम है। लेकिन वही टेक्नोलोजी-"fly by wire"- अब Flying Car में काम आएगी। एक नियंत्रण कक्ष से इस उडती कार (Flying Car) का कम्प्युटर से नियंत्रण हो सकेगा।



इस प्रकार की कार की कई डिझाईन्स बनाई गई है। प्रायोगिक तौर पर उनका उत्पादन भी किया गया है। लेकिन लोगों में यह उतनी प्रचलित नहिं हुइ है।




लेकिन, अगर आप चाहें  कीसी जानेमाने कार उत्पादक से संपर्क करके अपनी निजी Flying Car (उडती कार) बनवा सकते है।

NASA : "छोटे स्पेश ट्रावेर्ल्स" मंगल पर बस सकते है।

Source : CBC News
हमने बहोत सारे होलीवुड मुवी में देखा है की, इन्सान मंगल ग्रह पर उतरते है। फिलहाल वैज्ञानिको का एक दल जीवन को मंगल ग्रह पर पहुंचाने और उसे स्थाई करने के लिए प्रयोग कर रहा है।

यह प्रयोग ISS इन्टरनेशनल स्पेश स्टेशने में बैक्टेरीया पे हो रहे है। अभी तीन रिसर्च पेपर पर विचार विमर्श जारी है। ये खोज पेपर  "Survival of Bacillus Pumilus Spores for a Prolonged Period of Time in Real Space Conditions",  "Resistance of Bacterial Endospores to Outer Space for Planetary Protection Purposes" और "Survival of Rock-Colonizing Organisms After 1.5 Years in Outer Space,"।

ज्यादातर देखा गया है की, सजीव पदार्थ नई परिस्थितीओं में जल्दी से अनुकूलित न हो पायें तो अंत में उसकी मृत्यु निश्चत है। यदी हम मंगल ग्रह पर जाने की सोच रहे है तो पहेले बाह्य अंतरिक्ष और स्पेश शटलमें में "जीवन" की अनुकूलन क्षमता को जाँच लेना चाहिए।

हाल ही में मंगल पहुंचे यानों ने दी हुई माहिती के अनुसार मंगल पर बैक्टेरिया के जीने के लिए अनुकूल माहोल है। बीजाणुं (spores) बनाने वाले बैक्टेरीया मंगल पहुंचाने वाले यान में तथा मंगल के वातावरण सही तरीके से जिंदा रह सकते है।

कस्थुरी जे. वैंकटरामन, (उपर बताई हुए तीनों खोज पत्र में सहसंशोधक, Biotechnology and Planetary Protection Group, NASA's Jet Propulsion Laboratory), ऊन्हों नें समझाया की," मंगल पर उतरतें समय यान बहोत गरम हो जायेगा ऐसी विषम परिस्थितियों में भी सजीव जिंदा रहे एसी व्यवस्था करनी पडेगी।


The European Technology Exposure Facility (EuTEF) attached to the Columbus module of the International Space Station during orbital flight.
इन्टरनेशनल स्पेश स्टेशन की प्रयोगशाला The European Technology Exposure Facility (EuTEF)(see the picture) में ऐसी विषम परिस्थितियों में ज्यादातर बैक्टेरीया के बीजाणु (spores) 30 मिनीट में ही नष्ट हो गये। लेकिन Bacillus pumilus SAFR-032 (बेसीलस पुमिलस-SAFR-032 )‌ के बीजाणु (spores) 18 महिने तक जिंदा रहे ।"

एक और बैक्टेरीया की जाती Bacillus subtilis-168 (बेसीलस सबटिलीस-168 )‌ है, जिसका जिक्र दुसरे रिसर्च पेपर में किया है। लेकिन यह बैक्टेरीया अंतरीक्ष यान में उपयोग में आने वाली ऐल्युमिनियम (Al) की विषकारक असर से मर गए ।

तीसर रिसर्च पेपर में पथ्थरों में पायें जाने वालें बैक्टेरीया को अंतरीक्ष यान से मंगल पर भेजने के बारें में बताया गया है। उस पत्र के मुताबिक जैसे पृथ्वी पर धुम्रकेतु (comet) या उल्कापींड के टकराने के बाद उसके टुकडों में रहे बैक्टेरिया से जीवन शुरूआत हुई । ठीक वैसे ही हम ऐसे rock-colonizing cellular organisms (पथ्थरों में पायें जाने वालें बैक्टेरीया) को मंगल पर भेज सकते है। प्रयोगो से ये साबित हुआ है की ऐसे बैक्टेरीया 1.5 वर्ष तक जिंदा रहते है।

Search is 'ON' for rare PRIME NUMBERS : सबसे बडी अविभाज्य संख्या की खोज का प्रयत्न जारी.....

Source : phys.org
हमें गणित विषय में अविभाज्य अंक के बारे में बताया गया है। जिस संख्या को 1 और उस संख्या के बिना अन्य किसी संख्या से 'पूर्णत:' (शेष 0 हो ऐसे...) विभाजित न किया जा सके उस को अविभाज्य अंक कहते है।
>>उदाहरण :
5 को 1 और 5 के बिना किसी और संख्या से 'पूर्णत:' विभाजित नहिं कीया जा सकता। इसलिए 5 अविभाज्य अंक है।

2,3,5,7,11,13,... संख्याएँ अविभाज्य अंक के उदाहरण है।

अब सवाल है ...
सबसे बडी अविभाज्य संख्या कोन सी हो सकती है ? 

इन्डियाना स्टेट युनिवर्सिटी के प्रो. जेफ्फ एक्सो (Geoff Exoo, Mathematics and Computer Science)  और सहायक प्रो. जेफ्फ किन (Jeff Kinne, Mathematics and Computer Science) ने  सबसे बडी अविभाज्य संख्या खोजने का काम प्रारंभ किया है।
Mathematicians put their own spin on the search for rare prime numbers
उनका ध्यान सबसे बडे 'युग़्म अविभाज्य संख्या' (twin prime numbers, e.g. p and p + 2 likes 5 and 7, 7 and 9...etc) और 'सोफिया जर्मेन अविभाज्य संख्या' (Sophie Germain prime numbers, e.g. p + 2p + 1 likes 5 and 11, 11 and 23... etc) की खोज पर है।
उन्हों ने इन्टरनेट से जुडे 90,00,000 (90 लाख) कम्प्युटर्स को इस अविभाज्य संख्या की गणना में लगाया है। इस पद्धति को GIMPS (Great Internet Mersenne Prime Search) के नाम से जाना जाता है।

पिछले साल, डिसम्बर में इस टीम ने 14th सबसे बडी 'युग़्म अविभाज्य संख्या' (twin prime numbers) की खोज की है।

इसके अलावा इन्हों ने सबसे बडा 12th, 13th और18th 'सोफिया जर्मेन अविभाज्य संख्या' (Sophie Germain prime numbers), की भी खोज की है।

सबसे बडी अविभाज्य संख्या खोज की जरूर क्यों?

आधुनिक जमाने में बैकिंग, On-Line व्यापार, Internet Shopping जैसे क्षेत्र में कम्प्युटर और इन्टरनेट का उपयोग बढा है। व्यापारी वेब साइट एक खास प्रकार की सांकेतिक भाषा (Cryptographic Language) के इस्तमाल से अपने आर्थिक व्यवहार को सुरक्षित बनाती है।
यह सांकेतिक भाषा वास्तविक तौर पर दो अविभाज्य अंको गुणाकार होता है। जिसमें दो बडे अविभाज्य अंको को लेकर उनके गुणनफल से एक नया अंक मिकता है। जिसको सांकेतिक भाषा (Cryptographic Language) तौर पर उपयोग किया जाता है।

यदी आपको दो में से एक भी अविभाज्य अंक का पता नहीं है तो, इस नये अंक को विभाजित  (factorise) करने के लिए एक खास अल्गोरिधम बनाना पडता है । जो काफी कठिन और समय लेने वाला काम हो जाता है।

आधुनिक कम्प्युटर ज्यादा तेज गणना कर सकते है। ऐसे कम्प्युटर आसानी से सांकेतिक भाषा को सुलझा सकते है। इसलिए ज्यादा बडे अविभाज्य अंको की खोज जरूरी है।

बडी अविभाज्य संख्या खोज का इतिहास

1958 में खोजा गया सबसे बडा अविभाज्य अंक '6 अंको' का था।
1951में खोजा गया सबसे बडा अविभाज्य अंक '44 अंको' का था।
1953 में '687 अंको' वाला सबसे बडा अविभाज्य अंक खोजा गया।
1903  में खोजा गया सबसे बडा अविभाज्य अंक '39,751 अंको' का  बना था ।
1993 में '2,27,832 अंको' का और
2013 में '17 लाख अंको' का सबसे बडा अविभाज्य अंक खोजा गया।
मार्च, 2014 में प्रो. जेफ्फ एक्सो और प्रो. जेफ्फ किन ने 208th अविभाज्य अंक खोजा है। यह अविभाज्य अंक '7,12,748 अंको' से बना है।

इस अविभाज्य अंक को कागज पे लिखा जाए तो 1 माइल जितनी लंबाई का होगा!!!








Saturday, 17 May 2014

आर्जेन्टिना में से महाकाय (gaint) डायनासोर के अस्थि मिले

Source : BBC News
आर्जेन्टिना में पेन्टागोनिया के पश्विम में स्थित 'ला फ्लेन्चा' के रेगीस्तान से महाकाय डायनोसोर के  अश्मिभूत अस्थि मिले है।


इस डायनोसौर के कुल्हे की हड्डी के (thigh bone) माप से यह अंदाजा लगाया जाता है की, यह डायनोसोर 40 मिटर(13 फूट) लंबा और 20 मिटर (65 फूट) ऊंचा होगा। इस हिसाब से उसका वजन 77 टन (14 आफ्रिकन हाथी जितना!!) होगा । यह उस वक्त का सबसे महाकाय डायनोसोर हो सकता है।

वैज्ञानिको का मानाना है की, ये टिटानोसौर (titanosaur) की नयी जाति हो सकती है । इस जाति के डायनोसौर वनस्पतिहारी (herbivore) थे ।

Thursday, 15 May 2014

Dancing Frogs Found in India : "नृत्य करने वाले मेढक"


 new dancing frogs, Micrixalus kottigeharensis.
Source : Times of India
भारत के पश्चिमी जंगलो से "Dancing Frog" (नृत्य करनेवाले मेढक) की एक जाति मिली है। इस जाति के 14 मेढक मिले है।

"Dancing Frog" जाति के नर प्रणय मिलन के समय अपने पैरो को उपर-नीचे करते हुए अजीब सा नृत्य करता है। ये जाति के मेढक बहोत छोटे होते है। उनकी लंबाई 13-35 मिलीमीटर (एक मक्खि जितना !!) जितनी ही होती है। प्रो. सत्यभामा दास बिजु (मुख खोजकर्ता, दिल्ही युनिवर्सिटी) के नेतृत्व में "Dancing Frog" की खोज पीछले एक दशक से पश्विम घाट की पर्वतमाला में हो रही थी।
Dancing Frog
प्रो. सत्यभामादास बिजु इस मेढक की बारे में कहते है-,
" तेज बहने वाले झरने, Dancing Frog का बहुत छोटा कद- कारणों से यह मेढक जल्दी से नजर नहीं आ सकते ।यह जाति के नर मेढक प्रणय मिलन के समय अपना पिछला पैर उठाके हवामें लहराता है। इस जाति की मादा का बर्ताव भी अजीब पाया गया है। वो अपने अंडे उथले पानी के एक गढ्ढे में रख के उपर मिट्टी और पथ्थर ढँक देती है।"
Dancing Frog के DNA से पता चलता है की इनका अस्तित्व डाईनासोर के जमाने से भारत में है।
प्रो. सत्यभामा दास बिजु आगे कहते है-,
प्रो. सत्यभामादास बिजु
"जंगल में झरने के बहते पानी के तेज शोर की वजह से इन मेढको ने मादा को आकर्षित करने का यह तरीका ईजाद किया होगा। लेकिन मादा का अपने अंडो को रखने के लिए घोसला बनाना (गढ्ढा बनाना) अजीब बर्ताव है।"

प्रो. सत्यभामादास बिजु भारत के "मेढक मेन" (Frog man of India) नाम से जाने जाते है। उनके नाम कई खोजें दर्ज है। जिनमें "Purple Frog" (बैंगनी मेढ्क) भी है।
उनका मानना है की पर्यावरण में परिवर्तन और आवास की कमी के कारण Dancing Frog की जाति अब नाशप्राय: हो रही है।

शायद, इस जाति का पृथ्वी पर  यह आखरी नृत्य हो सकता है !!!!

Wednesday, 14 May 2014

IPR,GANDHINAGAR (INDIA) का उर्जा क्षेत्र में वैश्विक और एतिहासिक योगदान

Source : Times Of India
लगता है, ऊर्जा का भविष्य "गुजरात" की कोख में पल रहा है !!

IPR, Gandhinagar
गांधीनगर के नजदिक स्थित IPR (इन्स्टियूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च) के वैज्ञानिको ने विश्व के हृदय समान प्रोजेक्ट, ITER (इन्टरनेशनल थर्मोन्युक्लियर ऐक्सप्रिमेन्ट रिएक्टर, Tokamak Reactor in France) में अपना सहयोग दीया है। ये वैज्ञानिक सहयोग से बनाने वाला विश्व का सबसे बडा रिएक्टर है। इस प्रोजेक्टकी मदद से भविष्य में थर्मोन्युक्लियर फ्युजन प्रकिया (परमाणुकेन्द्र संलयन, सूर्य और तारों में होनेवाली प्रक्रिया)से सस्ती, प्रदुषणमुक्त और सलामत उर्जा पेदा हो सकेगी।
भारत,  ITER में क्रायोस्टेट के 45 घटक और वेक्युम पात्र बनाकर पहुंचाने वाला है। जो इस प्रोजेक्ट के सबसे महत्वपूर्ण और बडे घटक (components) है। ये यंत्र सामग्री 2015 तक ITER, फ्रांस में पहुँच जायेगी। 2022-25 तक इस प्लांट में प्लाज्मा बन जाएगा और इसके बाद के समय में इस रिएक्टर (भठ्ठी) में हमारे सूर्य से 10 गुना ज्यादा तापमान पेदा हो जाएगा ।
Tokamak fusion reactor
Cadarache,France.

Diagram
Tokamak fusion reactor



भारत की महत्वपूर्ण उपल्ब्धि:-

अब भारत क्रायोजेनिक रिएक्टर के निर्माण करने वालें देशों में सामिल हो गया है। इस प्रोजेक्ट में सामिल Made in India रिएक्टर का वजन 23000 टन ( 3 एफिल टावर 
जितना !!!) है और इस में 840 क्युबिक मिटर  प्लाज्मा समा सकता है। डॉ. होमी भाभा, डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ. अब्दुल कलाम का सपना अब साकार बनता नजर आ रहा है।



IPR का SST-1 काम कैसे करता है ?


इस रिएक्टर में चुंबकीय और विद्युतीय क्षेत्र की मदद से हाइड्रोजन प्लाज्मा को गरम किया जाता है। फिर अतिवाहक चुंंबक (super conducting magnet) से दबा कर हाइड्रोजन
प्लाज्मा में थर्मोन्युक्लियर फ्युजन प्रकिया (परमाणुकेन्द्र संलयन) शुरु की जाती है।

Tuesday, 13 May 2014

Globel Warming : पश्चिम एन्टाकर्टिक का ग्लेशियर तूट चूका है, समुद्र जल स्तर बढने का खतरा

थ्वाइट्स ग्लेशियर (16 October, 2012)
Source : National Geographic
वैज्ञानिकोने चेतावनी दी है की पश्चिम एन्टाकर्टिक से थ्वाइट्स ग़्लेशियर तूट गया है। और अब उसके पिगलने से समुद्र में जल स्तर बढने का खतरा पेदा हो गया है।

वैज्ञानिको का अंदाजा था की, ये 2 माईल मोटा (3.2 km thick) ग्लेशियर अगले कुछ वर्षो तक एन्टाकर्टिक में रहेंगा। लेकिन पृथ्वी के बढतें तापमान (Globel warming) के कारण इस ग़्लेशियर की पिगलने की रफतार बढ गई है।

अगर ये ग्लेशियर पुरा पिगल जाता है तो पुरे विश्व में समुद्र जल स्तर 46 ईंच (60 cm) बढ सकता है। समुद्र जल स्तर में कुछ सेन्टिमीटर का बदलाव कई लोगो के लिए मुसिबत ला सकता है।  पुरा ग्लेशियर पिगलने में 200 से 900 साल समय लग सकता है। लेकिन Globel warming की तिव्रता और बर्फवर्षा का प्रमाण यह जल्दी या धीमा करेगा ।


इतिहास में ऐसे प्रमाण मिलते है की, गुजरात में श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी, लोथल , धोलावीरा का नगर के डुबने का कारण भी यही था।

किस कारण से पश्चिम एन्टाकर्टिक का थ्वाइट्स ग़्लेशियर पिगलने लगा ? 


Globel Warming के कारण वैश्विक हवामान में बदलाव आया है। पवन की दिशा और समुद्रो के आंतरीक प्रवाह (under oceanic currents) में बदलाव के कारण पाइन आइलेन्ड में हर रोज 8 क्युबिक माइल गरम पानी आने लगा । जिससे यह थ्वाइट्स ग्लेशियर पिगलने लगा। फिर अभी तक इस घटना को विश्वनीय तरीके कोइ  समझा नहीं सकता है।

इयान जाउगीन (Ian Joughin, University of Wahshington) ने थ्वाइट्स ग्लेशियर के भौतिक फेरफारो का कम्प्युटर अध्ययन करके बताया है की, "थ्वाइट्स ग्लेशियर पिगलने के प्रारंभिक दोर में है। थ्वाइट्स ग्लेशियर का पिगलना "runaway process" है। अब उसे रोकने के प्रयास बिनअसरकारक है। लेकिन अब बाकी के पश्चिम एन्टाकर्टिक ग्लेशियर भी सुरक्षित नहीं है।"

Sunday, 11 May 2014

HAPPY MOTHER'S DAY : मधर डॅ का इतिहास जाने


मधर डॅ का इतिहास :-
प्राचीन समय में ग्रीकवासी क्रोनस की पत्नी और समग्र देवताओं की माता "रिहा" (Rhea)‌ को आदर देने के लिए मधर डॅ मनाते थे। ई.पू. 250 में रोमन्स भी इस दिन को मधर डॅ के तोर पर मनाते थे।
रोमन्स  "साइबेल" (Cybele, देवताओं की माता) को सम्मान्नित करने के लिए मधर डॅ  को "हिलारिया" (Hilaria) के नाम से मनाते थे। हिलारिया  तीन दीन मनाया जाता था। जिसमें परेड, स्पोर्ट्स, नाटक आदी का आयोजन होता था। हालांकी, समय चलते ये समारोह बदनाम होने लगा । अंत में, साइबल के अनुयायीओं को रोम से खदेड दिया गया।

प्रारंभिक समय में इसाई (Christian community) व्रत के चोथे रविवार को वर्जिन मधर मेरी (प्रभु ईसु की माता) की याद में मनाते थे।लेकिन, U. K. (ब्रिटन) में यह दीन विश्व की  सभी माताओं के लिए मनाया जाता था । U. K. (ब्रिटन) में इस दिन को "Mothering Sunday" (ममता रविवार) के नाम से मनाते थे।19th सदी के बाद, ये प्रणाली ज्यादातर समाप्त हो गई। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस दिन के मनाने के प्रमाण मिलते है।

जुलिया वार्ड होव(Julia Ward Howe, activist पत्रकार, कवियत्री) ने सबसे पहेले मधर डॅ का विचार समाज में रखा। अन्ना जर्विस (Anna Jarvis, activist) ने मधर डॅ भी को अधिकारिकता देने को प्रयास किया। 1911 से US के हर राज्य में यह दिन मनाया जाता है। 8 May,1914  को प्रेसिडेंट वुडवर्ड विल्सनने May महिने के दूसरे रविवार को मधर डॅ  के तोर मनाने की अधिकारिकता दी।

दुनिया भर के सभी लोग अपनी मां को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक अवसर के रूप में मधर डॅ को ले रहे है।  मधर डॅ को अमेरिका, ब्रिटेन के अलावा  भारत, डेनमार्क, फिनलैंड, इटली, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया, मेक्सिको, और कनाडा सहित कई देशों में आज मनाया जाता है. 

માતા / મા સાથે જોડાયેલું ગુજરાતી સાહિત્ય :-
માતા = આઈ; જનેતા; બા; જનની; જી; માતા; જનયિત્રી; પ્રસૂ; માતુશ્રી; માઈ.

વિનોબા લખે છે કેઃ બિલકુલ પહેલી પરમેશ્વરની મૂર્તિ, જે આપણી પાસે છે, તે છે ખુદ આપણી મા.
શ્રુતિ કહે છે કે, માતૃદેવો ભવ.
ગાંધીગીતા-વત્સલતાના રૂપમાં તે પરમેશ્વરની મૂર્તિ જ ત્યાં ઉપસ્થિત દેખાય છે. તે માતાની વ્યાપ્તિને આપણે વધાવી લઈએ અને વંદે માતરમ કહીને રાષ્ટ્ર માતાની તરફ અને પછી અખિલ ભૂમાતા પૃથ્વીની પૂજા કરીએ.ડસેલા જે સર્પના ઝેરને ચૂસે, માંદી માની કરે ચાકરી તે ચડે. (Content is modified by Paresh Jha )


મા સંદર્ભના રૂઢિપ્રયોગો :-

( 1) મા તે મા ને બાકી વગડાના વા = મા સમાન બીજું કોઇ નથી.

(2) મા પૂછે આવતો, બાયડી પૂછે લાવતો = મા જાણે મોટો થાય, બાયડી જાણે લાવતો થાય. જણનારી તે જીવ આપવાની, પરણનારી તે પોક મૂકવાની.

(3) મા ભઠિયારી બાર કલાલ, તેના દીકરા લાલમલાલ = સ્થિતિ ઉપરવટ જવું.

(4) મા મૂઈ એટલે બાપ વેચ્યો = બાપ તે બાપ ને મા તે મા,

(5) ઓરમાન મા તે માથાનો ઘા;

(6) મા તે માયો ને બાપ તે ખાટલાનો પાયો;

(7) મા મૂળો ને બાપ ગાજર

(8) માએ શેર સૂંઠ ખાવી = વધારે પડતું શૌર્ય દર્શાવવું.

(9) માના પેટમાંથી કોઈ શીખીને અવતરતું નથી = કોઈ માણસ ડાહ્યો કે વિદ્વાન જન્મતો નથી.

(10) માના રેંટિયામાં સમાય પણ બાપના રાજ્યમાં ન સમાય

(12) ઘોડેસવારી કરતા પિતા કરતાં ભીખ માગતી માતા સારી.

HAPPY MOTHER'S DAY : मधर डॅ का इतिहास जाने

मधर डॅ का इतिहास :- प्राचीन समय में ग्रीकवासी क्रोनस की पत्नी और समग्र देवताओं की माता "रिहा" (Rhea)‌ को आदर देने के लिए मधर ड...