source : Times of India
जी. ब्रेईट और जॉन ऐ व्हिलर ने प्रकाश का द्रव्य में रूपांतर करने का सिद्धांत 1934 में दिया था।
प्रयोग का महत्व:
इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के शुरूआत के 100 सेकन्डस का चित्र स्पष्ट किया जा सकेगा। बिग बेंग के बाद कैसे यह द्रव्य स्वरूप ब्रह्मांड बना ? इस प्रश्न का उत्तर यह प्रयोग दे पायेगा।
प्रथम चरण :

द्वितीय चरण:
अब सोने (Au, Gold) के प्याले जैसे पात्र में अंदर की ओर -Hohlraum (German शब्द, 'गुहा')- शक्तिशाली लेसर बीम फेंका जाता है। जिससे तारों में बनता है वैसा ही 'उष्मीय क्षेत्र' बनता है। जिसमें से भी फोटोन निकलते है।(जैसे गरम लोहों से लाल प्रकाश निकलता है!!)
पहेले चरण के फोटोन को इन दूसरे चरण के फोटोन की दिशा में भेजा जाता है । दोनों के टकराने से इलेक्ट्रोन और पोझिट्रोन पेदा होते है।
प्रो. स्टीव रोझ (इम्पेरियल कोलेज, लंडन) ने बताया की- 'इस प्रयोग से 80 साल पहेले के सिद्धांत को प्रायोगिक सहमति मिली है। और उच्च ऊर्जा वाले भौतिक प्रयोगो के लिए नई दिशा खुल गई है।'
"प्रकाश के दो कण (फोटोन) को एक दुसरे से टकराया जाए तो उनका इलेक्ट्रोन और पोझिट्रोन में रुपांतर हो जाएगा।"
लेकिन, इसका प्रायोगिक तौर पर कभी पृथक्करण नहीं हो सका। इस प्रयोग को संपन्न करने के शक्तिशाली कण प्रवेगक (पार्टिकल एक्लेरेटर) चाहिए।
2014 में लंडन में स्थित इम्पेरियल कोलेज की 'ब्लेकेट फिजिक्स लेबोरेटरी' में यह प्रयोग किया गया है। इससे जी. ब्रेईट और जॉन ऐ व्हिलर के सिद्धांत को अनुमोदन मिला है।
प्रयोग का महत्व:
इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के शुरूआत के 100 सेकन्डस का चित्र स्पष्ट किया जा सकेगा। बिग बेंग के बाद कैसे यह द्रव्य स्वरूप ब्रह्मांड बना ? इस प्रश्न का उत्तर यह प्रयोग दे पायेगा।
प्रयोग कैसे किया गया ?
प्रथम चरण :
वैज्ञानिको ने शक्तिशाली लेसर किरणों से इलेक्ट्रोन्स को प्रकाश गति (3× 108 m/s) के जितना प्रवेगित किया । इन इलेक्ट्रोन्स को सोने (Au, Gold) पर फेंका गया । जिससे अति शक्तिशाली फोटोन (हमारे दृश्यप्रकाश से लाखो गुना!!) का बीम मिलता है ।

द्वितीय चरण:
अब सोने (Au, Gold) के प्याले जैसे पात्र में अंदर की ओर -Hohlraum (German शब्द, 'गुहा')- शक्तिशाली लेसर बीम फेंका जाता है। जिससे तारों में बनता है वैसा ही 'उष्मीय क्षेत्र' बनता है। जिसमें से भी फोटोन निकलते है।(जैसे गरम लोहों से लाल प्रकाश निकलता है!!)
पहेले चरण के फोटोन को इन दूसरे चरण के फोटोन की दिशा में भेजा जाता है । दोनों के टकराने से इलेक्ट्रोन और पोझिट्रोन पेदा होते है।
प्रो. स्टीव रोझ (इम्पेरियल कोलेज, लंडन) ने बताया की- 'इस प्रयोग से 80 साल पहेले के सिद्धांत को प्रायोगिक सहमति मिली है। और उच्च ऊर्जा वाले भौतिक प्रयोगो के लिए नई दिशा खुल गई है।'
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