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थ्वाइट्स ग्लेशियर (16 October, 2012) |
वैज्ञानिकोने चेतावनी दी है की पश्चिम एन्टाकर्टिक से थ्वाइट्स ग़्लेशियर तूट गया है। और अब उसके पिगलने से समुद्र में जल स्तर बढने का खतरा पेदा हो गया है।
वैज्ञानिको का अंदाजा था की, ये 2 माईल मोटा (3.2 km thick) ग्लेशियर अगले कुछ वर्षो तक एन्टाकर्टिक में रहेंगा। लेकिन पृथ्वी के बढतें तापमान (Globel warming) के कारण इस ग़्लेशियर की पिगलने की रफतार बढ गई है।

अगर ये ग्लेशियर पुरा पिगल जाता है तो पुरे विश्व में समुद्र जल स्तर 46 ईंच (60 cm) बढ सकता है। समुद्र जल स्तर में कुछ सेन्टिमीटर का बदलाव कई लोगो के लिए मुसिबत ला सकता है। पुरा ग्लेशियर पिगलने में 200 से 900 साल समय लग सकता है। लेकिन Globel warming की तिव्रता और बर्फवर्षा का प्रमाण यह जल्दी या धीमा करेगा ।
इतिहास में ऐसे प्रमाण मिलते है की, गुजरात में श्री कृष्ण की द्वारिका नगरी, लोथल , धोलावीरा का नगर के डुबने का कारण भी यही था।
किस कारण से पश्चिम एन्टाकर्टिक का थ्वाइट्स ग़्लेशियर पिगलने लगा ?
Globel Warming के कारण वैश्विक हवामान में बदलाव आया है। पवन की दिशा और समुद्रो के आंतरीक प्रवाह (under oceanic currents) में बदलाव के कारण पाइन आइलेन्ड में हर रोज 8 क्युबिक माइल गरम पानी आने लगा । जिससे यह थ्वाइट्स ग्लेशियर पिगलने लगा। फिर अभी तक इस घटना को विश्वनीय तरीके कोइ समझा नहीं सकता है।
इयान जाउगीन (Ian Joughin, University of Wahshington) ने थ्वाइट्स ग्लेशियर के भौतिक फेरफारो का कम्प्युटर अध्ययन करके बताया है की, "थ्वाइट्स ग्लेशियर पिगलने के प्रारंभिक दोर में है। थ्वाइट्स ग्लेशियर का पिगलना "runaway process" है। अब उसे रोकने के प्रयास बिनअसरकारक है। लेकिन अब बाकी के पश्चिम एन्टाकर्टिक ग्लेशियर भी सुरक्षित नहीं है।"
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