Sunday, 18 May 2014

NASA : "छोटे स्पेश ट्रावेर्ल्स" मंगल पर बस सकते है।

Source : CBC News
हमने बहोत सारे होलीवुड मुवी में देखा है की, इन्सान मंगल ग्रह पर उतरते है। फिलहाल वैज्ञानिको का एक दल जीवन को मंगल ग्रह पर पहुंचाने और उसे स्थाई करने के लिए प्रयोग कर रहा है।

यह प्रयोग ISS इन्टरनेशनल स्पेश स्टेशने में बैक्टेरीया पे हो रहे है। अभी तीन रिसर्च पेपर पर विचार विमर्श जारी है। ये खोज पेपर  "Survival of Bacillus Pumilus Spores for a Prolonged Period of Time in Real Space Conditions",  "Resistance of Bacterial Endospores to Outer Space for Planetary Protection Purposes" और "Survival of Rock-Colonizing Organisms After 1.5 Years in Outer Space,"।

ज्यादातर देखा गया है की, सजीव पदार्थ नई परिस्थितीओं में जल्दी से अनुकूलित न हो पायें तो अंत में उसकी मृत्यु निश्चत है। यदी हम मंगल ग्रह पर जाने की सोच रहे है तो पहेले बाह्य अंतरिक्ष और स्पेश शटलमें में "जीवन" की अनुकूलन क्षमता को जाँच लेना चाहिए।

हाल ही में मंगल पहुंचे यानों ने दी हुई माहिती के अनुसार मंगल पर बैक्टेरिया के जीने के लिए अनुकूल माहोल है। बीजाणुं (spores) बनाने वाले बैक्टेरीया मंगल पहुंचाने वाले यान में तथा मंगल के वातावरण सही तरीके से जिंदा रह सकते है।

कस्थुरी जे. वैंकटरामन, (उपर बताई हुए तीनों खोज पत्र में सहसंशोधक, Biotechnology and Planetary Protection Group, NASA's Jet Propulsion Laboratory), ऊन्हों नें समझाया की," मंगल पर उतरतें समय यान बहोत गरम हो जायेगा ऐसी विषम परिस्थितियों में भी सजीव जिंदा रहे एसी व्यवस्था करनी पडेगी।


The European Technology Exposure Facility (EuTEF) attached to the Columbus module of the International Space Station during orbital flight.
इन्टरनेशनल स्पेश स्टेशन की प्रयोगशाला The European Technology Exposure Facility (EuTEF)(see the picture) में ऐसी विषम परिस्थितियों में ज्यादातर बैक्टेरीया के बीजाणु (spores) 30 मिनीट में ही नष्ट हो गये। लेकिन Bacillus pumilus SAFR-032 (बेसीलस पुमिलस-SAFR-032 )‌ के बीजाणु (spores) 18 महिने तक जिंदा रहे ।"

एक और बैक्टेरीया की जाती Bacillus subtilis-168 (बेसीलस सबटिलीस-168 )‌ है, जिसका जिक्र दुसरे रिसर्च पेपर में किया है। लेकिन यह बैक्टेरीया अंतरीक्ष यान में उपयोग में आने वाली ऐल्युमिनियम (Al) की विषकारक असर से मर गए ।

तीसर रिसर्च पेपर में पथ्थरों में पायें जाने वालें बैक्टेरीया को अंतरीक्ष यान से मंगल पर भेजने के बारें में बताया गया है। उस पत्र के मुताबिक जैसे पृथ्वी पर धुम्रकेतु (comet) या उल्कापींड के टकराने के बाद उसके टुकडों में रहे बैक्टेरिया से जीवन शुरूआत हुई । ठीक वैसे ही हम ऐसे rock-colonizing cellular organisms (पथ्थरों में पायें जाने वालें बैक्टेरीया) को मंगल पर भेज सकते है। प्रयोगो से ये साबित हुआ है की ऐसे बैक्टेरीया 1.5 वर्ष तक जिंदा रहते है।

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